My involvement with ISKCON is quite brief but found it an unique organisation in that apart
from awakening Krishna consciousness among devotees and apart from cleansing inner
self, it brings people together, something extremely important for a human society to survive
and thrive. All glories and credit goes to you and your vision for creating such a vibrant and
forward looking Krishna consciousness model.
Shrimad Bhagwad-Gita As It Is continues to remain one of the main Gita source for me for
seeking solutions whenever I find myself in any difficult situation.
I have written a small Hindi poem for your Janm Divas.
श्रीकृष्णचन्द्र जब जन समाज में, धर्म को ह्रसित पाते हैं ।
स्थापन करने धर्म कृष्ण, अवतार नया दिखलाते हैं ।
जब हो आवश्यक परिस्थिति बस, रौद्र रूप दिखलाते हैं ।
असहाय त्रसित मानव समाज में, भक्ति भाव जगवाते हैं ।
चैतन्य प्रभु बन युगल, राधिका कृष्ण रूप में आते हैं ।
और हरे कृष्ण के महामन्त्र से, कृष्ण राग बरसाते हैं ।
अपने प्रतिनिधियों के द्वारा, महिमा का गान कराते हैं ।
माया की पट्टी से आवृत, चिन्तन को मुक्त कराते हैं ।
इस क्रम में अभय चरण बालक, कलकत्ता में जन्मा आकर ।
जन्मोत्सव कृष्ण दिवस पहले, सब आनंदित प्रसाद पाकर ।
नन्दोत्सव पर था जन्म लिया, इस से नन्दू कहलाते थे ।
बालकपन में क्रीड़ा अवसर पर, देवालय में जाते थे ।
ठाकुर सिद्धांत सरस्वती से,छब्बीस उम्र में भेंट हुई ।
वे हुए प्रभावित ठाकुर से, मन में जागी चेतना नई ।
महाभागवत प्रेमी ठाकुर जी, आचार्य और दार्शनिक थे ।
गौड़ीय मठ कलकत्ता के वे, संवाहक और संस्थापक थे ।
ठाकुर सिद्धांत सरस्वती से, आगे चल कर दीक्षा पायी ।
स्वामी जी पर निज गुरु देव की, अनुपम अनुकम्पा छायी ।
आगे चलकर स्वामी जी ने, वृंदावन जाकर बास किया ।
दामोदर मन्दिर में रह कर, गिरधारी का सानिध्य लिया ।
गौड़ीय वैष्णव संस्था से उन ने, एक नाम उपाधि को पाया ।
भक्तिवेदान्त प्रभुपाद नाम, जिस पर राधेश राग छाया ।
प्रभुपाद जी की अंग्रेजी में, दक्षता सुदृढ़ अकल्पित थी ।
वेदिक विषयों की व्याख्या की, प्रतिभा भी सारगर्भित थी ।
आदेशित होकर गुरुवर से, महाप्रभु संदेश प्रचारण का ।
भारत की वेदिक विद्या का, अंग्रेजी में रूपान्तर का ।
भगवतपुराण भगवतगीता, का किया अंग्रेजी रूपान्तर ।
कर डाला गिरिमर्दन सम्भव, जैसे कोई जादू मन्तर ।
इस मुरलीधर शक्ति का बल, अति अतुलनीय ही होता है ।
जो करे समर्पित मोहन को, मोहन करता जब सोता है ।
जब मानव अपने पौरुष का, प्रति कण अर्पित कर देता है ।
वह कृष्ण कृपा से लिए कार्य में, विजय श्री पा लेता है ।
टंकण सम्पादन परिशोधन, पर किया नियुक्त स्वयं को ही ।
तज भूख प्यास आलस्य नींद, सब किया स्वयं जो लगा सही ।
सत्तर की उम्र जलदूत बैठ,न्यूयार्क शहर प्रस्थान किये ।
तैंतीस दिनों में हृदय गति के, विधि ने झटके तीन दिये ।
ईश्वर भी सक्षम लोगों की, घनघोर परीक्षा लेता है ।
बिन परखे पूर्ण समर्पण वह, कोई कार्य कभी वह देता है ।
आखिर कर वे पहुँचे बन्दर, श्री कृष्ण भक्ति के अनुगामी ।
सरकार विरोधी हिप्पी जन ही, मिले जहाँ उतरे स्वामी ।
स्वामी जी ने हरि नाम गीत से, हिप्पी जनों को तृप्त किया ।
श्रीकृष्ण नशे का पान करा, उन्हें नशे की लत से मुक्त किया ।
फिर अल्प समय में भक्त जनों की, संख्या बढ़ती गयी बड़ी ।
बनती है शृंखला और बड़ी, जब जुड़े कड़ी से नई कड़ी ।
संस्था इसकोन बनायी फिर, भूमण्डल में विस्तार किया ।
श्री कृष्ण कृष्ण श्री कृष्ण कृष्ण, की महिमा का गुणगान किया ।
अनगिनत पुस्तकें लिखीं आपने, मौलिकता दिखलाती हैं ।
हे ज्ञान सिन्धु हे प्रभुपाद, भक्ति का पाठ पढ़ाती हैं ।
विश्व में जगन्नाथ यात्रा का भी, श्रेय आपको जाता है ।
यदि गुरु का हाथ शीश पर हो, तो सब सम्भव हो जाता है ।
संस्था इसकोन फूलफल कर, भक्तों को राह दिखायेगी ।
सदियों तक जहाँ मनुज गोष्ठी, कृष्णामृत पीने आयेगी ।
श्रीकृष्ण महामंत्र द्वारा, जन में चैतन्य जगाया है ।
यूरोप अफ्रीका अमेरिका, आस्ट्रेलिया तक पहुँचाया है ।
श्रीकृष्ण सिद्धि और साधन का, एक सुगम मार्ग बतलाया है ।
जो साधन जोड़े समाज को, वह सबके मन को भाया है ।
साधारण शब्दों के द्वारा, श्रीकृष्ण तत्व समझाया है ।
उनकी लीलाओं द्वारा, कृष्णामृत पान कराया है ।
प्रभुपाद आपके चरणों में, यह कृष्ण भक्त करता वन्दन ।
इस जन्म दिवस पर करतल ध्वनि से, शीश नवा कर अभिनन्दन ।